करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्: श्लोक की रिंगटोन डाउनलोड करें

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 करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्: एक दिव्य श्लोक की महिमा "करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्। वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुंदं मनसा स्मरामि।" यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण की अद्वितीय छवि और उनकी लीलाओं का वर्णन करता है। इसमें भगवान को वट के पत्ते पर लेटे हुए एक छोटे बालक के रूप में दर्शाया गया है। श्लोक उनकी बाल लीलाओं का स्मरण कराता है और भक्तों को आनंद, शांति और भक्ति का अनुभव कराता है। श्लोक का अर्थ: इस श्लोक में एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया गया है, जहां भगवान श्रीकृष्ण अपनी नन्ही हथेलियों से अपने चरणों को थामे हुए हैं और अपने मुख में उन्हें रख रहे हैं। यह दृश्य वट वृक्ष के पत्ते पर लेटे हुए भगवान बाल मुकुंद का है। उनकी यह छवि न केवल उनकी बाल सुलभता को दर्शाती है, बल्कि उनके दिव्य स्वरूप को भी प्रकट करती है। रिंगटोन के लिए इस श्लोक का महत्व: आज के डिजिटल युग में जब हर किसी के पास मोबाइल है, रिंगटोन एक ऐसी चीज़ है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को व्यक्त करती है। अगर आपकी रिंगटोन में यह श्लोक हो, तो यह न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है, बल्कि आपको और ...

तुलसीदास जी का श्री राम जी से मिलन कैसे हुआ ?

 ✍तुलसीदास और श्री राम मिलन🏹!!!!!!!


काशी में एक जगह पर तुलसीदास रोज रामचरित मानस को गाते थे वो जगह थी अस्सीघाट। उनकी कथा को बहुत सारे भक्त सुनने आते थे। लेकिन एक बार गोस्वामी प्रातःकाल शौच करके आ रहे थे तो कोई एक प्रेत से इनका मिलन हुआ। उस प्रेत ने प्रसन्न होकर गोस्वामीजी को कहा कि मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ। आपने जो शौच के बचे हुए जल से जो सींचन किया है मैं तृप्त हुआ हूँ। मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ।


गोस्वामीजी बोले – भैया, हमारे मन तो केवल




एक ही चाह है कि ठाकुर जी का दर्शन हमें हो जाए। राम की कथा तो हमने लिख दी है, गा दी है।पर दर्शन अभी तक साक्षात् नहीं हुआ है। ह्रदय में तो होता है पर साक्षात् नहीं होता। यदि दर्शन हो जाए तो बस बड़ी कृपा होगी।


उस प्रेत ने कहा कि महाराज! मैं यदि दर्शन करवा सकता तो मैं अब तक मुक्त न हो जाता? मैं खुद प्रेत योनि में पड़ा हुआ हूँ, अगर इतनी ताकत मुझमें होती कि मैं आपको दर्शन करवा देता तो मैं तो मुक्त हो गया होता अब तक।


तुलसीदास जी बोले – फिर भैया हमको कुछ नहीं चाहिए।


तो उस प्रेत ने कहा – सुनिए महाराज! मैं आपको दर्शन तो नहीं करवा सकता लेकिन दर्शन कैसे होंगे उसका रास्ता आपको बता सकता हूँ।


तुलसीदास जी बोले कि बताइये।


बोले आप जहाँ पर कथा कहते हो, बहुत सारे भक्त सुनने आते हैं, अब आपको तो मालूम नहीं लेकिन मैं जानता हूँ आपकी कथा में रोज हनुमानजी भी सुनने आते हैं। मुझे मालूम है हनुमानजी रोज आते हैं।


बोले कहाँ बैठते हैं?


बताया कि सबसे पीछे कम्बल ओढ़कर, एक दीन हीन एक कोढ़ी के स्वरूप में व्यक्ति बैठता है और जहाँ जूट चप्पल लोग उतारते हैं वहां पर बैठते हैं। उनके पैर पकड़ लेना वो हनुमान जी ही हैं।


गोस्वामीजी बड़े खुश हुए हैं। आज जब कथा हुई है गोस्वामीजी की नजर उसी व्यक्ति पर है कि वो कब आएंगे? और जैसे ही वो व्यक्ति आकर बैठे पीछे, तो गोस्वामीजी आज अपने आसन से कूद पड़े हैं और दौड़ पड़े। जाकर चरणों में गिर गए हैं।


वो व्यक्ति बोला कि महाराज आप व्यासपीठ पर हो और मेरे चरण पकड़ रहे हो। मैं एक दीन हीन कोढ़ी व्यक्ति हूँ। मुझे तो न कोई प्रणाम करता है और न कोई स्पर्श करता है। आप व्यासपीठ छोड़कर मुझे प्रणाम कर रहे हो?


गोस्वामीजी बोले कि महाराज आप सबसे छुप सकते हो मुझसे नहीं छुप सकते हो। अब आपके चरण मैं तब तक नहीं छोडूंगा जब तक आप राम से नहीं मिलवाओगे। जो ऐसा कहा तो हनुमानजी अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हो गए।


आज तुलसीदास जी ने कहा कि कृपा करके मुझे राम से मिलवा दो। अब और कोई अभिलाषा नहीं बची। राम जी का साक्षात्कार हो जाए हनुमानजी, आप तो राम जी से मिलवा सकते हो। अगर आप नहीं मिलवाओगे तो कौन मिलवायेगा?


हनुमानजी बोले कि आपको रामजी जरूर मिलेंगे और मैं मिलवाऊँगा लेकिन उसके लिए आपको चित्रकूट चलना पड़ेगा, वहाँ आपको भगवन मिलेंगे।


गोस्वामीजी चित्रकूट गए हैं। मन्दाकिनी जी में स्नान किया, कामदगिरि की परिकम्मा लगाई। अब घूम रहे हैं कहाँ मिलेंगे? कहाँ मिलेंगे? 

सामने से घोड़े पर सवार होकर दो सुकुमार राजकुमार आये। एक गौर वर्ण और एक श्याम वर्ण और गोस्वमीजी इधर से निकल रहे हैं। 

उन्होंने पूछा कि हमको रास्ता बता तो हम भटक रहे हैं।


गोस्वामीजी ने रास्ता बताया कि बेटा इधर से निकल जाओ और वो निकल गए। अब गोस्वामीजी पागलों की तरह खोजते हुए घूम रहे हैं कब मिलेंगे? कब मिलेंगे?


हनुमानजी प्रकट हुए और बोले कि मिले?

गोस्वामीजी बोले – कहाँ मिले?


हनुमानजी ने सिर पकड़ लिया और बोले अरे अभी मिले तो थे। जो घोड़े पर सवार राजकुमार थे वो ही तो थे। आपसे ही तो रास्ता पूछा और कहते हो मिले नहीं। चूक गए और ये गलती हम सब करते हैं। न जाने कितनी बार भगवान हमारे सामने आये होंगे और हम पहचान नहीं पाए। कितनी बार वो सामने खड़े हो जाते हैं हम पहचान नहीं पाते। न जाने वो किस रूप में आ जाये।


सबका कर आदर समान जो तेरे घर आये

क्योंकि न जाने किस रूप में नारायण मिल जाये।


गोस्वामीजी कहते हैं हनुमानजी आज बहुत बड़ी गलती हो गई। फिर कृपा करवाओ। फिर मिलवाओ।


हनुमानजी बोले कि थोड़ा धैर्य रखो। एक बार और फिर मिलेंगे। गोस्वामीजी बैठे हैं। मन्दाकिनी के तट पर स्नान करके बैठे हैं। स्नान करके घाट पर चन्दन घिस रहे हैं। मगन हैं और गा रहे हैं। श्री राम जय राम जय जय राम। ह्रदय में एक ही लग्न है कि भगवान कब आएंगे। और ठाकुर जी एक बार फिर से कृपा करते हैं। ठाकुर जी आ गए और कहते हैं बाबा.. बाबा… चन्दन तो आपने बहुत प्यारा घिसा है। थोड़ा सा चन्दन हमें दे दो… लगा दो।


गोस्वामीजी को लगा कि कोई बालक होगा। चन्दन घिसते देखा तो आ गया। तो तुरंत लेकर चन्दन ठाकुर जी को दिया और ठाकुर जी लगाने लगे, हनुमानजी महाराज समझ गए कि आज बाबा फिर चूके जा रहे हैं। आज ठाकुर जी फिर से इनके हाथ से निकल रहे हैं। हनुमानजी तोता बनकर आ गए शुक रूप में और घोषणा कर दी कि



चित्रकूट के घाट पर, भई संतन की भीर।

तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।


हनुमानजी ने घोसणा कर दी कि अब मत चूक जाना। आज जो आपसे चन्दन ग्रहण कर रहे हैं ये साक्षात् रघुनाथ हैं और जो ये वाणी गोस्वामीजी के कान में पड़ी तो गोस्वामीजी चरणों में गिर गए ठाकुर जी तो चन्दन लगा रहे थे। बोले प्रभु अब आपको नहीं छोडूंगा।


 जैसे ही पहचाना तो प्रभु अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हो गए हैं और बस वो झलक ठाकुर जी को दिखाई दी है। ठाकुर जी अंतर्ध्यान हो गए और वो झलक आखों में बस गई ह्रदय तक उतरकर। फिर कोई अभिलाषा जीवन में नहीं रही है। परम शांति। परम आनंद जीवन में आ गया ठाकुर जी के मिलने से।


आराम की तलब है तो एक काम करले

आ राम की शरण में और राम राम करले।

और इस तरह से आज तुलसीदास जी का राम से मिलन हनुमानजी ने करवाया है। 

जय श्री राम 🙏 

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🙏🏻जय सियाराम🙏🏻

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