करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्: श्लोक की रिंगटोन डाउनलोड करें

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 करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्: एक दिव्य श्लोक की महिमा "करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्। वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुंदं मनसा स्मरामि।" यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण की अद्वितीय छवि और उनकी लीलाओं का वर्णन करता है। इसमें भगवान को वट के पत्ते पर लेटे हुए एक छोटे बालक के रूप में दर्शाया गया है। श्लोक उनकी बाल लीलाओं का स्मरण कराता है और भक्तों को आनंद, शांति और भक्ति का अनुभव कराता है। श्लोक का अर्थ: इस श्लोक में एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया गया है, जहां भगवान श्रीकृष्ण अपनी नन्ही हथेलियों से अपने चरणों को थामे हुए हैं और अपने मुख में उन्हें रख रहे हैं। यह दृश्य वट वृक्ष के पत्ते पर लेटे हुए भगवान बाल मुकुंद का है। उनकी यह छवि न केवल उनकी बाल सुलभता को दर्शाती है, बल्कि उनके दिव्य स्वरूप को भी प्रकट करती है। रिंगटोन के लिए इस श्लोक का महत्व: आज के डिजिटल युग में जब हर किसी के पास मोबाइल है, रिंगटोन एक ऐसी चीज़ है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को व्यक्त करती है। अगर आपकी रिंगटोन में यह श्लोक हो, तो यह न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है, बल्कि आपको और ...

बरसाना के एक भक्त की अनन्य भक्ति...

❤..साफ हृदय..❤

      

बरसाना में एक भक्त थे ब्रजदास। उनके एक पुत्री थी, नाम था रतिया। यही ब्रजदास का परिवार था। ब्रजदास दिन मे अपना काम क़रते और शाम को श्री जी के मन्दिर मे जाते दर्शन करते और जो भी संत आये हुवे होते हैं उनके साथ सत्संग करते। 

यही उनका नियम था। एक बार एक संत ने ब्रजदास से कहा भइया हमें नन्दगांव जाना है, सामान ज्यादा है तो तुम हम को नन्दगाँव पहुँचा सकते हो क्या ? 

ब्रजदास ने हां भर ली। ब्रज दास ने अपनी बेटी से कहा मुझे एक संत को नन्दगाँव पहुचाना है। समय पर आ जाऊँगा प्रतीक्षा मत करना। ब्रजदास सुबह चार बजे राधे राधे करते नंगे पांव संत के पास गये और संत के सामान और *ठाकुर जी* की पेटी और बर्तन ले लिये और चलने लगे। रवाना तो समय पर हुवे लेकिन संत को स्वास् रोग था कुछ दूर चलते फिर बैठ जाते। इस प्रकार नन्दगाँव पहुँचने में ही देरी हो गई । ब्रजदास ने सामान रख कर जाने की आज्ञा मांगी। संत ने कहा जून का महीना है ११ बजे हैं जल पी लो। कुछ जलपान कर लो, फिर जाना तो ब्रजदास ने कहा बरसाने की वृषभानु नंदनी नन्दगाँव मे ब्याही हुई है अतः मै यहाँ जल नहीं पी सकता।

संत की आँखो से अश्रुपात होने लगे । कितने वर्ष पुरानी बात है , कितना गरीब आदमी है पर दिल कितना ऊँचा है। ब्रजदास वापिस *राधे राधे* करते रवाना हुवे। ऊपर से सूरज की गर्मी नीचे तपती रेत। भगवान को दया आ गयी वे भक्त ब्रजदास के पीछे पीछे चलने लगे। एक पेड़ की छाया में ब्रजदास रुके और वही मूर्छित हो कर गिर पड़े। भगवान ने मूर्छा दूर क़रने के प्रयास किये पर मूर्छा दूर नहीं हुई। भगवान ने विचार किया कि मैंने अजामिल, गीध, गजराज को तारा, द्रोपदी को संकट से बचाया पर इस भक्त के प्राण संकट मे हैं कोई उपाय नही लग रहा है। ब्रजदास *राधारानी* का भक्त है वे ही इस के प्राणों की रक्षा कर सकती है तो उनको ही बुलाया जाए ।

भगवान भरी दुपहरी में *राधारानी* के पास महल में गये। *राधारानी* ने इस गर्मी में आने का कारण पूछा। भगवान ने कहा तुम्हारे पिता जी बरसाना और नन्दगाँव की डगर में पड़े हैं तुम चलकर संभालो। *राधा जी ने कहा कौन पिता जी ?* भगवान ने सारी बात समझाई और चलने को कहा। यह भी कहा की तुमको ब्रजदास की बेटी की रूप में भोजन ,जल लेकर चलना है। राधा जी तैयार होकर पहुँची। पिता जी.. पिता जी.. आवाज लगाई। ब्रजदास जागे। बेटी के 👣 चरणों मे गिर पड़े आज तू न आती तो प्राण चले जाते। 

बेटी से कहा आज तुझे बार बार देखने का मन कर रहा है। *राधा जी* ने कहा माँ बाप को संतान अच्छी लगती ही है। आप भोजन लीजिये। ब्रजदास भोजन लेने लगे तो *राधा जी* ने कहा घर पर कुछ मेहमान आये हैं मैं उनको संभालू आप आ जाना। कुछ दूरी के बाद *राधारानी* अदृश्य हो गयीं ।ब्रजदास ने ऐसा भोजन कभी नही पाया। शाम को घर आकर ब्रजदास बेटी के 👣 चरणों मे गिर पड़े। बेटी ने कहा आप ये क्या कर रहे हैं ? ब्रजदास ने कहा आज तुमने भोजन, जल ला कर मेरे प्राण बचा लिये। बेटी ने कहा मैं तो कहीं नहीं गयी। ब्रजदास ने कहा अच्छा बता मेहमान कहाँ हैं ? बेटी ने कहा कोई मेहमान नहीं आया।

अब ब्रजदास के समझ में सारी बात आई। उसने बेटी से कहा कि आज तुम्हारे ही रूप में राधा रानी के दर्शन हुवे। भाव बिभोर हो गये ब्रजदास, मेरी किशोरी ने मेरे कारण इतनी प्रचण्ड गर्मी में कष्ट उठाया मेरी बेटी के रूप में आकर मुझे भोजन कराये जल पिलाया और मैं उन्हें पहचान ना सका ..... अब तो बस एक ही आस निरन्तर लगी रहती फिर से श्री राधा रानी के दर्शन मिलें !

जय जय श्री राधे🙏🏻🌹🙏🏻



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