करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्: श्लोक की रिंगटोन डाउनलोड करें

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 करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्: एक दिव्य श्लोक की महिमा "करारविंदेन पदारविंदं मुखारविंदे विनिवेशयंतम्। वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुंदं मनसा स्मरामि।" यह श्लोक भगवान श्रीकृष्ण की अद्वितीय छवि और उनकी लीलाओं का वर्णन करता है। इसमें भगवान को वट के पत्ते पर लेटे हुए एक छोटे बालक के रूप में दर्शाया गया है। श्लोक उनकी बाल लीलाओं का स्मरण कराता है और भक्तों को आनंद, शांति और भक्ति का अनुभव कराता है। श्लोक का अर्थ: इस श्लोक में एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया गया है, जहां भगवान श्रीकृष्ण अपनी नन्ही हथेलियों से अपने चरणों को थामे हुए हैं और अपने मुख में उन्हें रख रहे हैं। यह दृश्य वट वृक्ष के पत्ते पर लेटे हुए भगवान बाल मुकुंद का है। उनकी यह छवि न केवल उनकी बाल सुलभता को दर्शाती है, बल्कि उनके दिव्य स्वरूप को भी प्रकट करती है। रिंगटोन के लिए इस श्लोक का महत्व: आज के डिजिटल युग में जब हर किसी के पास मोबाइल है, रिंगटोन एक ऐसी चीज़ है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व को व्यक्त करती है। अगर आपकी रिंगटोन में यह श्लोक हो, तो यह न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है, बल्कि आपको और ...

आदित्य हृदय स्तोत्र

                               आदित्य हृदय स्तोत्र
by Avghad blogs 

यह पूरा स्तोत्र भगवान सूर्य को समर्पित है और इसे रोज सुबह पढ़ने से आत्मविश्वास, शक्ति, और विजय की प्राप्ति होती है। 

 यह पूरा आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी में प्रस्तुत है, जो भगवान सूर्य को समर्पित है। यह स्तोत्र रामायण में वर्णित है, जब ऋषि अगस्त्य ने भगवान राम को इसे सुनाया था। --- 

 1. ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्। 
    रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्।। 
 (जब भगवान राम युद्ध में थके हुए और चिंतित खड़े थे और रावण युद्ध के लिए तैयार था।) --- 

 2. दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्। 
    उपगम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः।। 
 (दैवी शक्तियां और ऋषि इस युद्ध को देखने के लिए एकत्रित हुए। ऋषि अगस्त्य ने भगवान राम से कहा।) ---

 3. राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्। 
    येन सर्वानरीन्वत्स समरे विजयिष्यसि।।
 (अगस्त्य ऋषि ने कहा: हे राम! हे महाबली! सनातन रहस्य को सुनो। इसके द्वारा तुम युद्ध में सभी शत्रुओं को पराजित करोगे।) -
-- 
 4. आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।
    जयावहं जपेन्नित्यं अक्षयं परमं शिवम्।। 
 (यह आदित्य हृदय स्तोत्र पवित्र है, सभी शत्रुओं का नाश करने वाला है, विजय प्रदान करने वाला है, और इसे नित्य जपने से अक्षय फल और परम कल्याण की प्राप्ति होती है।) --- 

 5. सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।              चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्।। 
 (यह स्तोत्र सभी मंगल कार्यों का मूल है, पापों का नाश करने वाला, चिंता और शोक को हरने वाला, तथा आयु बढ़ाने वाला है।) 

 6. रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुर नमस्कृतम्। 
    पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्।।
 (उगते हुए सूर्य, जिनकी किरणें प्रकाशमान हैं, जिनकी देवता और असुर भी पूजा करते हैं, उन भास्कर (सूर्य) की पूजा करो।) ---

 7. सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः। 
एष देवासुरगणान् लोकान् पाति गभस्तिभिः।।
 (यह सूर्य सभी देवताओं के आत्मा हैं, तेजस्वी हैं, और अपनी किरणों द्वारा देवता, असुर और समस्त लोकों का पालन करते हैं।) --- 

 8. एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः। 
     महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः।। 
  (यह सूर्य ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कंद, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चंद्रमा और वरुण हैं।) ---

 9. पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः। 
    वायुर्वह्निः प्रजाप्राणः ऋतु: कर्ता प्रभाकरः।। 
   (यह सूर्य ही पितृ, वसु, साध्य, अश्विनी कुमार, मरुत, मनु, वायु, अग्नि, प्रजाओं के प्राण, ऋतु और सबके कर्ता प्रभाकर हैं।) ---

 10. आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।
     सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः।। 
  (यह सूर्य ही आदित्य, सविता, सूर्य, खग, पूषा, किरणों के स्वामी, सुवर्ण के समान तेजस्वी, भानु, हिरण्यरेता और दिवाकर हैं।) --- 

 11. हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।
     तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान्।।
  (यह सूर्य हरे रंग के घोड़ों वाले रथ के स्वामी, हजार किरणों से युक्त, सात घोड़ों वाले रथ पर सवार, अंधकार का नाश करने वाले, शंभु, त्वष्टा, और अंशुमान् हैं।) ---

 12. हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः। 
     अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः।। 
 (यह सूर्य हिरण्यगर्भ, शिशिर को हरने वाले, ताप देने वाले, भास्कर, रवि, अग्निगर्भ, अदिति के पुत्र और शीत नाशक हैं।) ---

 13. व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः। 
     घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः।। 
  (यह सूर्य आकाश के स्वामी, अंधकार का नाश करने वाले, वेदों के ज्ञाता, वर्षा के देवता, और विंध्य पर्वत को पार करने वाले हैं।) --- 

 14. आत्मसर्वेश्वरः सूक्ष्मः शेषस्थानुः परागमः। 
    सर्वात्मा सर्वदृग्व्यासः सर्वशक्तिरशेषतः।। 
  (यह सूर्य समस्त आत्माओं के स्वामी, सूक्ष्म रूप वाले, अचल, समस्त दिशाओं में व्याप्त और समस्त शक्तियों के स्वामी हैं।) --- 

 15. नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः। 
       नमः उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।। 
   (हे हजार किरणों वाले सूर्य, आदित्य, उग्र, वीर, सारंग, आपको बार-बार प्रणाम।) ---

 16. नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः।
      ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।।
  (हे पद्म के समान उदय होने वाले, मार्तण्ड, ब्रह्मा, ईशान, अच्युत के प्रिय, और तेजस्वी सूर्य, आपको नमस्कार।) --- 

 17. नमः सप्ताश्वरथाय हरायण नमो नमः। 
       नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः।। 
 (हे सात घोड़ों के रथ पर सवार, हरे रंग के वाहन वाले, हजार किरणों वाले आदित्य, आपको बार-बार प्रणाम।) --- 
 

 21. नमः उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।
     नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः।। 
 (उग्र और वीर स्वरूप वाले सूर्यदेव को बार-बार प्रणाम। कमल के समान प्रसन्न और प्रकाशमान मार्तण्ड को नमस्कार।) --- 

 22. नमः ताम्रायारुणाय हरिणे हरमाय च। 
     नमः शम्भवे च मनवे च लोकस्य पतये नमः।। 
 (लाल-ताम्र वर्ण, अरुण स्वरूप, कोमल हरिण समान सूर्यदेव को प्रणाम। शंभु, मनु और समस्त लोकों के स्वामी को नमस्कार।) --- 

 23. त्रिलोचनाय चोच्चाय हराय च नमो नमः। 
      नमः सूर्याय शान्ताय सर्व रोग निवारिणे।।
  (तीन नेत्र वाले त्रिलोचन, उच्च स्वरूप, हरि और शांतस्वरूप सूर्यदेव को प्रणाम। रोगों को नष्ट करने वाले सूर्य को नमस्कार।) --- 

 24. आदित्याय च सोमाय कश्यपाय च नमो नमः। 
       नमः उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः।। 
 (कश्यप पुत्र आदित्य और सोम (चंद्रमा) के रूप में व्याप्त सूर्यदेव को प्रणाम। उग्र, वीर और सारंगधारी को बार-बार नमस्कार।) --- 

 25. ततो युध्यस्व विजयी भव।
     सर्वान् शत्रून् भक्षयिष्यसि।। 
 (इसके बाद युद्ध करो और विजयी हो। तुम अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करोगे।) --- 

 Phalashruti (फलश्रुति – Benefits of Recitation) 

 26. एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकाभवत्तदा।
     धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्।।
  (यह सुनकर महातेजस्वी भगवान राम का शोक समाप्त हो गया। वे प्रसन्नचित्त हो गए और इस स्तोत्र को उन्होंने ध्यानपूर्वक धारण किया।) --- 

 27. आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान्। 
      त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्।। 
  (सूर्य का ध्यान करते हुए और इस स्तोत्र का जप करके भगवान राम ने परम आनंद प्राप्त किया। फिर उन्होंने पवित्र होकर धनुष उठाया।) --- 

 28. रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युधाय समुपागमत्। 
       सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत्।।
 (शत्रु रावण को देखकर भगवान राम ने प्रसन्नचित्त होकर युद्ध के लिए कदम बढ़ाया। उन्होंने पूरी ताकत और उत्साह के साथ उसे पराजित करने का संकल्प किया।) ---

 29. अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्टः। निशिचरपति संक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति।। (सूर्यदेव ने प्रसन्नचित्त होकर भगवान राम को देखा और देवताओं के बीच जाते हुए घोषणा की कि निशाचर रावण का नाश निश्चित है।) --- 


 Aditya Hridaya Stotra’s Conclusion यह स्तोत्र भगवान राम को शक्ति और विजय का प्रतीक बनाता है। इसे नित्य जपने से आयु, आरोग्य, और सफलता प्राप्त होती है। ---

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